संस्कृत

संस्कृत भाषा का इतिहास:-

संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। 'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा। संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है। यह शुद्ध संस्कारयुक्त भाषा है। संस्कृत व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाषा कम्प्यूटर के उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा है।

संस्कृत भाषा को देववाणी और विश्व की प्राचीनतम भाषा में से एक मानी जाती है। संस्कृति में लिखी गई पाण्डुलिपियों की संख्या आज भी विश्व की सबसे अधिक मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी समस्त पाण्डुलिपियों को अभी भी नहीं पढ़ा जा सका है। अतः संस्कृत भाषा का साहित्य बहुत विस्तृत है।

कालिदास,अभिनवगुप्त, शंकराचार्य जैसे अनेक नाम हैं जो संस्कृति भाषा के मूर्धन्य विद्वानों में से एक है। साहित्य के अलावा आयुर्वेद के क्षेत्र में, दर्शन के क्षेत्र में तथा विज्ञान आदि के क्षेत्र में भी अनेक विद्वान भी इस भाषा में पाए जाते हैं। संस्कृत भाषा हमारे भारत के लगभग समस्त भाषाओं की जननी है। हिन्दी और उर्दू इसकी प्रमुख संतानों में से एक हैं।

दुनिया की सभी भाषाओं का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा शुरुआत में बोले गए ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ अर्थात लोगों ने भाषाओं का विकास किया और उसे अपने देश और धर्म की भाषा बनाया। लेकिन संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं।
धरती और ब्रह्मांड में गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों को पकड़कर उसे लिपि में बांधा और उसके महत्व और प्रभाव को समझा।

कहते हैं कि किसी देश की जाति, संस्कृति, धर्म और इतिहास को नष्ट करना है तो उसकी भाषा को सबसे पहले नष्ट किया जाए। मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम 'अष्टाध्यायी' है।

संस्कृत भाषा की उत्पत्ति

विश्व की समस्त भाषाओं को भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर चार भागों में विभाजित किया गया है। यूरेशिया (यूरोप- एशिया), अफ्रीका भूखण्ड, प्रशांत महासागरीय भूखण्ड तथा अमेरिका भूखण्ड इसके भाग हैं। यूरेशिया (यूरोप- एशिया) परिवार की एक शाखा भारोपीय परिवार है। इस भारोपीय परिवार की 10 शाखा है। जिसमें से एक शाखा भारत-इरानी (आर्य) परिवार है। इसके तीन उपवर्ग हैं – ईरानी , दरद , और भारतीय आर्यभाषा । भारतीय आर्यभाषा से ही संस्कृत भाषा की उत्पत्ति होती है।


भारतीय आर्यभाषा का विकास और चरण

इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

1. प्राचीन भारतीय आर्यभाषा 2000 ई.पू. से 500 ई.पू. तक
- वैदिक संस्कृति 2000 ई.पू. से 800 ई.पू. तक
- संस्कृत अथवा लौकिक संस्कृत 800 ई.पू. से 500 ई.पू. तक

2. मध्यकलीन भारतीय आर्यभाषा 500 ई.पू. से 1000 ई.पु. तक
- पाली (प्रथम प्राकृत) 500 ई.पू. से 1 ई. तक
- प्राकृत (द्वितीय प्राकृत) 1 ई. से 500 ई. तक
- अपभ्रंश (तृतीय प्राकृत) 500 ई. से 1000 तक

3. आधुनिक भारतीय आर्यभाषा 1000 ई. से अब तक